यह कविता में अपनी मां श्रीमती सरिता
अग्रवाल के नाम समर्पित करना चाहूंगा,
यह कविता वैसे हर मां के नाम है!
घुटनों से रेंगते रेंगते, कब पैरों पर खड़ा हुआ
तेरी ममता के छाव में मैं मां ना जाने कब बढ़ा हुआ,
काला टीका दूध मलाई आज भी सब कुछ वैसा है,
मैं ही मैं हूं हर जगह प्यार यह तेरा कैसा है,
सीधा साधा भोला भाला मैं ही सबसे अच्छा हूं,
कितना भी हो जाऊं बड़ा मां आज भी तेरा बच्चा हूं,
कितना भी हो जाऊं बड़ा मां आज भी तेरा बच्चा हूं!!